दर्द को पिने की कोशिश करियेगा चंदा बाबु, क्योंकि ये सुशासन की सरकार है। आपका दर्द जो कम कर सकता था, वही दर्द बढ़ा गया। क्या कर सकते हैं आप, न ही आप अख़लाक़ हैं न ही गाय का मांस जिसको लेकर प्राइम टाइम में जगह मिले और न ही आपको कोई अवार्ड मिला है जिसको वापस कर मिडिया पे अपना दुःख बयां कर देश को बता सकते। सुना है आपकी पत्नी बीमार रहती हैं और आपका एक मात्र बचा पुत्र भी विकलांग है, सो जो भी हैं अब एक मात्र आप ही हैं अपने परिवार के लिए। अपनी बूढ़ी हड्डियों को हो सके तो मजबूत करियेगा।
आपके शहर सिवान के दिवंगत पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी भी आपकी ही तरह कानून से भरोसा खोते जा रहीं हैं। पर क्या कर सकते हैं, सुशासन की ढोल पिटी जा रही है शायद उनकी दृष्टि में यही सुशासन कहलाता हो? क्योंकि जिस सहाबुद्दीन की जमानत पे रिहाई पर राज्य के उपमुख्यमंत्री से लेके मंत्री विधायक तक नतमस्तक हों, तो तस्वीर साफ ही है।
माफ करियेगा चंदा बाबु ना ही आप वोट बैंक हैं की आपके यहाँ मंत्री विधायक की लाइन लग जाती, इंसाफ तो छोड़िए संवेदना भी प्रकट करते। माफ करियेगा चंदा बाबु न ही आप अख़लाक़ हैं न ही गाय का मांस ना ही आपके पास कोई अवार्ड है जिसको वापस कर आप अपनी आवाज दर्ज करा सकते।
लेकिन ऐसा नहीं है कि आपकी हिम्मत के प्रति इज्जत कम हुई है, आप महान हैं चंदा बाबु! हमारी पूरी संवेदना है और यही कामना है कि आपकी बूढ़ी हड्डियों को ताकत मिले और इंसाफ भी, हम भी आपकी तरह असहाय हैं क्योंकि हम आम जनता हैं।
लोग कहते हैं, हर स्याह काली रात के बात एक चमकता दिन आता है, पर वे ये बताना भूल जाते हैं कि हरेक चमकते दिन के बाद फिर वही स्याह काली रात लौट आती है। कम से कम बिहार की स्थिति को देख कर कुछ ऐसा ही लगता है। जो लोग गुनगुनाते थे "बिहार में बहार है" एक बार सोचियेगा जरूर की किसके लिए बहार और ये बसंत है।


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