कुछ इतिहास का बोध और कुछ पिछली अनुभवों के होते हुए भी भारतीय समाज अबोध और अनुभवहीन बना हुआ है या यों कहें कि अबोध होने का नाटक कर रहा है, हम आजादी के बाद के आधुनिक भारत के अतीत में झांकने की कोशिस भी नहीं करते या हिम्मत ही नहीं है। पीछे कश्मीर में क्या हुआ था, तो लोग बस यही बोलेंगे की कुछ नहीं धारा ३७० हटाई गई है, ये बोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाएंगे कि लाखों लोग को उनके ही देश में उनके ही घरों में घुस कर मारा गया, बलात्कार किया गया और उनको राज्य से बाहर निकाल दिया गया, कौन थे वो लोग- एक था सताने वाला और एक था सताए गए लोग। सताने वाला तब भी संगठित था और अब भी संगठित है, और दूसरी तरफ सताए गए लोग कल भी असंगठित थे और आज भी असंगठित हैं।
फर्क किसी को कुछ भी नहीं पड़ता, क्योंकि इनकी आण्विक संरचना ही ऐसी है शायद या फिर हिंदुओं के अन्तर्मन की तल में पनप रही वो लज्जा भाव की तुमने मुगलों की गुलामी की फिर अंग्रेजों की गुलामी, ये गुलाम शब्द शायद रच-बस गया है इनके खून में।
हिन्दु, सिख, ईसाई की तकदीर का फैसला पाकिस्तान में मुसलमानों के भरोसे और जब वो प्रताड़ित हो भारत में आएं तो भी उनकी भविष्य मुसलमान ही करे।
लोगों ने अपनी अंतरात्मा जो गिरवी रखी हुई है न, यही हैं आधुनिक भारत के जयचंद और दुःख की बात ये है कि आज ये असंख्य हो गए हैं और ये भारत को शनैःशनैः फिर उसी पाश्र्व की ओर ले जा रहा है जिससे हम ऊब कर बाहर निकलने की कोशिश में अपने ही धरा के दो हिस्से कर दिए थे।
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