सोमवार, 12 अगस्त 2013

बिकाऊ मीडिया

भारतीय मिडिया बिकाऊ है, ये जग जाहिर हो चला है, खास कर पिछले कोयला घोटाले में फंसे एक सांसद का समाचार  ZEE NEWS के द्वारा कैसे दबाये जाने की तैयारी थी जिसे दुनिया ने देखा और किस प्रकार NDTV की महिला एंकर किसी खास राजनितिक दल को फायेदा पहुँचाने के लिए ''****स  को defend कर दीजियेगा'' कहती हुई पकड़ी गयी जो गलती से Live हो गया था.

इसी प्रकार आप देख सकते हैं की कारगिल युद्ध के दौरान एक NEWS चैनल की इक महिला पत्रकार द्वारा दर्शाए गए स्थानों पर किस प्रकार दुश्मन सेना ने गोले दागे थे

आजकल अक्सरये देखने को आ रहा है की जब भी सरकार किसी घोटाले या संकट में फसती है तो मिडिया ही उनकी कुर्सी का चौथा खम्भा बनकर खड़ा होता है, चाहे वो पवन बंसल का मुद्दा हो या चीनी घुसपैठ का मुद्दा हो चाहे बंगलादेशी घुसपैठ का मुद्दा हो

और हाँ इस मिडिया को देश में केवल एक ही दंगे नजर आते हैं गुजरात के २००२ वाला दंगा, इस देश में न उसके पहले दंगा हुआ न उसके बाद कभी दंगा हुआ

कश्मीर में एक समुदाय के हजारों लोगों की हत्या की गयी और लाखों को राज्य से भगा दिया गया और इस देश में वो आज भी रेफ्युजी बने हैं और शरणार्थी कैम्पों में हैं पर किसी मिडिया को ये दिखाई नहीं देता
आज के परिपेक्ष में आप कई घटनाक्रम को देख सकते हैं जो की वो सीधे सीधे देश से जुड़े मुद्दे हैं (जिसके सामने ना आने से देश को क्षति हो रही है और किसी खास राजनितिक दल के नेताओं को आर्थिक और राजनितिक फायदे हो रहे हैं) को दबया जाता है चाहे वो देश की आर्थिक कमजोरी का मामला हो सुरक्षा का मामला हो या घोटाले का मामला हो मिडिया उसको उठता कम है और दबाता ज्यादा है 

एक प्रकरण देखिये (वो भला हो सोशल नेटवर्किंग साइट्स का) जो सिंघवी नमक एक दल का नेता हुआ करता था को दुनिया ने देखा एक महिला के साथ अनैतिक कृत्य करते हुए लेकिन उसेकी फिर से राजनितिक स्थापना के लिए मिडिया पूरी जोर शोर से लगी है समय समय पर मिडिया के दल्ले उसका इंटरव्यू लेने पहुँच ही जाते हैं वो तो भला हो सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उसके सामने आते ही इतनी गालियाँ पड़ती है की उसे फिर से भूमिगत होना पड़ता है 

तो सत्तारूढ़ राजनितिक दलों के फायेदे के लिए उनके घिनौने कृत्यों का छुपाने का काम आज की मिडिया करती है इसमें उनका किस प्रकार फायेदा होता है आप लोग ZEE NEWS वाले प्रकरण में देख ही चुके हैं की मुंह बंद करने के और ख़बरों को दबाने के कितने पैसे मिलते हैं