बात मार्के की है लोग माने या ना माने पर जब आप इस परिस्थिति की गहराई में जायेंगे तो पाएंगे की हरेक साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की शुरुआत कुछ साधारण या छोटी सी घटना या एक गंभीर घटना से होती है जिससे निपटने की मूल जिम्मेदारी कानून और उसको पालन करवाने वाली संस्था का होता है जिसे वो निभा नहीं पाते और तब समाज के किसी एक वर्ग को ये सन्देश जाता है की उन्हें न्याय नहीं मिल रहा न्यायिक व्यवस्था से और वे अपने आप को असुरक्षित पाते हैं | तब वो समाज का खास वर्ग संगठित होता है खुद अपनी सुरक्षा करने और न्याय करने के लिए | जिस कानून, न्याय और सुरक्षा की जिम्मेवारी पूर्ण रूप से सरकार की होती है चाहे वो सरकार राज्य की हो या केंद्र की |
फिर शुरुआत होती है आरोप और प्रत्यारोप की लेकिन मूल में इसकी जिम्मेवारी पूर्ण रूप से सत्तारूढ़ सरकारों की होती है, साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन ने क्या किया अगर उनके प्रभाव से बाहर हो गया तो राज्य सरकार ने क्या किया अगर उनके भी प्रभाव के बाहर हो गया तो पड़ोसी राज्यों ने स्थिति को सम्हालने के लिए कितनी मदद की अगर स्थिति फिर भी काबू में नहीं आई तो केंद्र सरकार ने स्थिति सम्हालने में राज्य की कितनी मदद की ये सारे पहलु हैं किसी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) से निपटने का या काबू में करने का |
साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की एक और परिस्थिति पर आप अगर नजर डालेंगे और अपने देश के बहार की परिस्थितिओं पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे की एक खास धर्म के अनुनाई किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं है, पता नहीं उस धर्म की धार्मिक दर्शन क्या अपने अनुनाइयों को सन्देश देती है जिससे वो किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं हो पाते और हमेशा टकराव की स्थिति में रहते हैं, आप अपने आस - पास के देशों जहाँ पर साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) हुए हैं और अगर इसके आगे की स्थिति देखेंगे तो पाएंगे की वो उस खास धर्म के मानने वाले देश में भी लोग आपस में उस धर्म से निकल कर जातीय संघर्ष में आपस में ही लड़ रहे हैं |
साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) के परिपेक्ष में ये बात निकल कर आती है की प्राथमिक कारण उस धर्म या समुदाय पे हुई पहली घटना होती है जिससे वहाँ की प्रशासन न्याय नहीं दे पाती और एक खास धर्म के लोग जिनका धर्म ही दुसरे धर्मों के प्रति घृणा का भाव पैदा करता है और दुसरे धर्म के मानने वाले लोग को शैतान और मानवता के दुश्मन कहते हैं |
अंत में कहना चाहूँगा की समाज में कही भी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की स्थिति उत्पन्न होती है तो ये सभ्य समाज और मानवता के लिए इससे अधिक शर्म की बात नहीं हो सकती |
फिर शुरुआत होती है आरोप और प्रत्यारोप की लेकिन मूल में इसकी जिम्मेवारी पूर्ण रूप से सत्तारूढ़ सरकारों की होती है, साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन ने क्या किया अगर उनके प्रभाव से बाहर हो गया तो राज्य सरकार ने क्या किया अगर उनके भी प्रभाव के बाहर हो गया तो पड़ोसी राज्यों ने स्थिति को सम्हालने के लिए कितनी मदद की अगर स्थिति फिर भी काबू में नहीं आई तो केंद्र सरकार ने स्थिति सम्हालने में राज्य की कितनी मदद की ये सारे पहलु हैं किसी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) से निपटने का या काबू में करने का |
साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की एक और परिस्थिति पर आप अगर नजर डालेंगे और अपने देश के बहार की परिस्थितिओं पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे की एक खास धर्म के अनुनाई किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं है, पता नहीं उस धर्म की धार्मिक दर्शन क्या अपने अनुनाइयों को सन्देश देती है जिससे वो किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं हो पाते और हमेशा टकराव की स्थिति में रहते हैं, आप अपने आस - पास के देशों जहाँ पर साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) हुए हैं और अगर इसके आगे की स्थिति देखेंगे तो पाएंगे की वो उस खास धर्म के मानने वाले देश में भी लोग आपस में उस धर्म से निकल कर जातीय संघर्ष में आपस में ही लड़ रहे हैं |
साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) के परिपेक्ष में ये बात निकल कर आती है की प्राथमिक कारण उस धर्म या समुदाय पे हुई पहली घटना होती है जिससे वहाँ की प्रशासन न्याय नहीं दे पाती और एक खास धर्म के लोग जिनका धर्म ही दुसरे धर्मों के प्रति घृणा का भाव पैदा करता है और दुसरे धर्म के मानने वाले लोग को शैतान और मानवता के दुश्मन कहते हैं |
अंत में कहना चाहूँगा की समाज में कही भी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की स्थिति उत्पन्न होती है तो ये सभ्य समाज और मानवता के लिए इससे अधिक शर्म की बात नहीं हो सकती |