बुधवार, 11 सितंबर 2013

साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) का सच

बात मार्के की है लोग माने या ना माने पर जब आप इस परिस्थिति की गहराई में जायेंगे तो पाएंगे की हरेक साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की शुरुआत कुछ साधारण या छोटी सी घटना या एक गंभीर घटना से होती है जिससे निपटने की मूल जिम्मेदारी कानून और उसको पालन करवाने वाली संस्था का होता है जिसे वो निभा नहीं पाते और तब समाज के किसी एक वर्ग को ये सन्देश जाता है की उन्हें न्याय नहीं मिल रहा न्यायिक व्यवस्था से और वे अपने आप को असुरक्षित पाते हैं | तब वो समाज का खास वर्ग संगठित होता है खुद अपनी सुरक्षा करने और न्याय करने के लिए | जिस कानून, न्याय और सुरक्षा की जिम्मेवारी पूर्ण रूप से सरकार की होती है चाहे वो सरकार राज्य की हो या केंद्र की |

फिर शुरुआत होती है आरोप और प्रत्यारोप की लेकिन मूल में इसकी जिम्मेवारी पूर्ण रूप से सत्तारूढ़ सरकारों की होती है, साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन ने क्या किया अगर उनके प्रभाव से बाहर हो गया तो राज्य सरकार ने क्या किया अगर उनके भी प्रभाव के बाहर हो गया तो पड़ोसी राज्यों ने स्थिति को सम्हालने के लिए कितनी मदद की अगर स्थिति फिर भी काबू में नहीं आई तो केंद्र सरकार ने स्थिति सम्हालने में राज्य की कितनी मदद की ये सारे पहलु हैं किसी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) से निपटने का या काबू में करने का |

साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की एक और परिस्थिति पर आप अगर नजर डालेंगे और अपने देश के बहार की परिस्थितिओं पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे की एक खास धर्म के अनुनाई किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं है, पता नहीं उस धर्म की धार्मिक दर्शन क्या अपने अनुनाइयों को सन्देश देती है जिससे वो किसी भी धर्म के साथ सहज नहीं हो पाते और हमेशा टकराव की स्थिति में रहते हैं, आप अपने आस - पास के देशों जहाँ पर साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) हुए हैं और अगर इसके आगे की स्थिति देखेंगे तो पाएंगे की वो उस खास धर्म के मानने वाले देश में भी लोग आपस में उस धर्म से निकल कर जातीय संघर्ष में आपस में ही लड़ रहे हैं |

साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) के परिपेक्ष में ये बात निकल कर आती है की प्राथमिक कारण उस धर्म या समुदाय पे हुई पहली घटना होती है  जिससे वहाँ की प्रशासन न्याय नहीं दे पाती और एक खास धर्म के लोग जिनका धर्म ही दुसरे धर्मों के प्रति घृणा का भाव पैदा करता है और दुसरे धर्म के मानने वाले लोग को शैतान और मानवता के दुश्मन कहते हैं |

अंत में कहना चाहूँगा की समाज में कही भी साम्प्रदायिक हिंसा (धार्मिक दंगे) की स्थिति उत्पन्न होती है तो ये सभ्य समाज और मानवता के लिए इससे अधिक शर्म की बात नहीं हो सकती |

सोमवार, 12 अगस्त 2013

बिकाऊ मीडिया

भारतीय मिडिया बिकाऊ है, ये जग जाहिर हो चला है, खास कर पिछले कोयला घोटाले में फंसे एक सांसद का समाचार  ZEE NEWS के द्वारा कैसे दबाये जाने की तैयारी थी जिसे दुनिया ने देखा और किस प्रकार NDTV की महिला एंकर किसी खास राजनितिक दल को फायेदा पहुँचाने के लिए ''****स  को defend कर दीजियेगा'' कहती हुई पकड़ी गयी जो गलती से Live हो गया था.

इसी प्रकार आप देख सकते हैं की कारगिल युद्ध के दौरान एक NEWS चैनल की इक महिला पत्रकार द्वारा दर्शाए गए स्थानों पर किस प्रकार दुश्मन सेना ने गोले दागे थे

आजकल अक्सरये देखने को आ रहा है की जब भी सरकार किसी घोटाले या संकट में फसती है तो मिडिया ही उनकी कुर्सी का चौथा खम्भा बनकर खड़ा होता है, चाहे वो पवन बंसल का मुद्दा हो या चीनी घुसपैठ का मुद्दा हो चाहे बंगलादेशी घुसपैठ का मुद्दा हो

और हाँ इस मिडिया को देश में केवल एक ही दंगे नजर आते हैं गुजरात के २००२ वाला दंगा, इस देश में न उसके पहले दंगा हुआ न उसके बाद कभी दंगा हुआ

कश्मीर में एक समुदाय के हजारों लोगों की हत्या की गयी और लाखों को राज्य से भगा दिया गया और इस देश में वो आज भी रेफ्युजी बने हैं और शरणार्थी कैम्पों में हैं पर किसी मिडिया को ये दिखाई नहीं देता
आज के परिपेक्ष में आप कई घटनाक्रम को देख सकते हैं जो की वो सीधे सीधे देश से जुड़े मुद्दे हैं (जिसके सामने ना आने से देश को क्षति हो रही है और किसी खास राजनितिक दल के नेताओं को आर्थिक और राजनितिक फायदे हो रहे हैं) को दबया जाता है चाहे वो देश की आर्थिक कमजोरी का मामला हो सुरक्षा का मामला हो या घोटाले का मामला हो मिडिया उसको उठता कम है और दबाता ज्यादा है 

एक प्रकरण देखिये (वो भला हो सोशल नेटवर्किंग साइट्स का) जो सिंघवी नमक एक दल का नेता हुआ करता था को दुनिया ने देखा एक महिला के साथ अनैतिक कृत्य करते हुए लेकिन उसेकी फिर से राजनितिक स्थापना के लिए मिडिया पूरी जोर शोर से लगी है समय समय पर मिडिया के दल्ले उसका इंटरव्यू लेने पहुँच ही जाते हैं वो तो भला हो सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उसके सामने आते ही इतनी गालियाँ पड़ती है की उसे फिर से भूमिगत होना पड़ता है 

तो सत्तारूढ़ राजनितिक दलों के फायेदे के लिए उनके घिनौने कृत्यों का छुपाने का काम आज की मिडिया करती है इसमें उनका किस प्रकार फायेदा होता है आप लोग ZEE NEWS वाले प्रकरण में देख ही चुके हैं की मुंह बंद करने के और ख़बरों को दबाने के कितने पैसे मिलते हैं

बुधवार, 1 मई 2013

गाँधी का सच

दुनिया जानती है कि ये गाँधी हिंदुओं के प्रति कितनी घृणा रखता था, और पाकिस्तान तथा पाकिस्तानियों के प्रति कितना लगाव,

इसी गाँधी ने भारत में से पाकिस्तान
बाँटने के बाद जब कुछ दिनों बाद पाकिस्तान ने कश्मीर के रास्ते अपने फियादीन भारत में भेजे थे, ये सब देखते हुए भी गाँधी इस हमले के बाद पाकिस्तान के लिए 55 करोड रुपए देने की माँग करने लगा, पर जब सरदार पटेल ने कहा कि नहीं गाँधी जी ऐसा नहीं हो सकता अभी पाकिस्तान बनते ही जिन्ना ने कश्मीर के रास्ते हम पर हमला करके हमारे काफी लोग कश्मीर में मार दिए हैं सो हम ऐसे नाग को पचपन करोड रुपया नहीं दे सकते...

ये बात सुन कर गाँधी का मूह फुल गया और गाँधी अनसन पाटी लेकर धरने पर बैठ गया कि जब तक पाकिस्तान को पचपन करोड रुपया नहीं दिया जाएगा जब तक मैं अपना अनसन खत्म नहीं करूँगा, फिर गाँधी मरने की हालत तक पहुँच गया जब सरदार पटेल को मजबूरन झुकना पड़ा और भारत सरकार ने पाकिस्तान को पचपन करोड रुपए दिए... और देख लो मित्रों भीख में मिले उन पचपन करोड रुपयों का पाकिस्तान ने क्या किया, उसके बाद पाकिस्तान ने भारत पर तीन बड़े हमले किए, पर गाँधी को क्या था वो तो भाई पाकिस्तान रूपी नाग के आगे दूध की कटोरी रख कर दुनिया छोड कर चला गया,...

और झेल आजतक उस नाग को हम रहे हैं....

ख़ैर नाथू राम गोडसे ने सही समय से गाँधी को निपटा दिया, नहीं तो गाँधी ना जाने अपने सपनों के कितने और पाकिस्तान बना कर जाता...